Last modified on 14 दिसम्बर 2020, at 18:24

भाषा का एक कवि / रूपम मिश्र

एक था कवि
अपनी भाषा की गाली से आहत था
फिर एकदिन सहा नहीं गया तो वो अपनी पीड़ा उगल बैठा

हालाँकि पीड़ा अपनी कवि ने व्यंजना में कही थी
पर हमने अभिधा में लपक लिया
फिर भाषा कायदे से अपने भदेसपन पर उतर आई

उस कर्कश शोर की भीड़ में भटकते हुए एहसास हुआ
कि ख़ामोशी कितनी ख़ूबसूरत होती है
तुम बहुत जल्दी से चुप हो गए कवि !

तुम्हारे हिस्से की बात अब कौन बोलेगा

क्या भाषा जब गाली में परिवर्तित होने लगे
तो चुप हो जाना बेहतर होता है ।