भाषा जब
मुझे उमड़ कर
नहला-सा देती है-
भीतर दुखती
जाने कब की रग,
सहला-सा
देती है
कभी निमोली
कभी फूल-सा, कुछ
कहला-सा
देती है
एक क्षितिज बिम्बों से भर
कहीं गगन पे,
फैला-सा
देती है
भाषा जब
मुझे उमड़ कर
नहला-सा देती है-
भीतर दुखती
जाने कब की रग,
सहला-सा
देती है
कभी निमोली
कभी फूल-सा, कुछ
कहला-सा
देती है
एक क्षितिज बिम्बों से भर
कहीं गगन पे,
फैला-सा
देती है