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भिस्टवाड़ो / मनोज पुरोहित ‘अनंत’

हर जाग्यां भिस्टवाड़ो
सारै जग में हैं
हरेक री रग-रग में है
साग में भेळी मिरच में है
भगवान रै भोग में
पुजारी री दखणां में है

रेल-बस री टिगट में
सीट लेवण में
अठै तांईं कै
काम सरू करण सूं लेय’र
निवेड़ण तांईं में भिस्टवाड़ो
अब तो
मोह में भी है
प्रीत में है
बिछोडै में है
पड़तख भिस्टवाड़ो।