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भीड़ शमशान तक जो आई है / सूरज राय 'सूरज'

भीड़ शमशान तक जो आई है।
उम्र भर की यही कमाई है॥

गर बुरा न लगे तो पूछूँ मैं
आपने दोस्ती निभाई है?

पूछता है ये बुढ़ापा सबसे
ज़िंदगी किस तरह बिताई है॥

फ़ि क्ऱ हर वक़्त है मेरी उसको
दर्द है या कि बड़ा भाई है॥

कोन निखरा है बिन तपे, बोलो
यूँ कहाँ दूध में मलाई है॥

रो रहा जो विदा पर बेटी की
लोग कहते हैं वह कसाई है॥

एक लड़की ने ख़ुदकशी ली
तब कहीं आबरू बचाई है॥

आसमां जो तेरे लिये "सूरज"
वक़्त की वह दियासलाई है॥