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भीतर उत्सव है / विष्णुचन्द्र शर्मा

-सुनों इसे
टीना!
‘कला
एक नृत्यरत
बगीचा है।
एक
उत्सव है
सागर का।
नृत्य
करती नदियाँ हैं
मंच पर
टीना!
तुम्हारी लय
तुम्हारी भंगिमा
मेरे भीतर
एक उत्सव
है सजीव।