भीतर-भीतर बसा रखा है
हमने पूरा गाँव।
यहाँ आओ, है शीतल छाँव।
सावन बरसे, भादों गरजे,
क्वांर परोसे घाम;
कातिक दीप जलाये बैठा
लिखे रोशनी नाम;
कौन अँधेरे में भटका फिर
किसको मिला न गाँव
यहाँ आओ है शीतल छाँव।
मीठी-मीठी धूप गुनगुनी
सरसों फूली पीले खेत;
रंग-गुलाल उड़ाता फागुन
खलिहानों में गाता चैत;
किसकी प्यार-पीर दहकी है
किसके लहके घाव।
यहाँ आओ है शीतल छाँव।
रुनझुन-रुनझुन-रुनझुन गाती
गपशप करती शाम;
प्यास खड़ी मिलती पनघट की
अक्सर उँगली थाम;
किसकी प्यास मरी-मुरझाई
किसको मिले न ठाँव।
यहाँ आओ है शीतल छाँव।
पनिहारिनें नहीं आतीं अब
किस्से ले-लेकर;
किससे बात करे अब पनघट
सपने दे-देकर;
भीतर तक भर गया कहाँ से
इतना अधिक दुराव।
यहाँ आओ है शीतल छाँव।