भुट्टे के जैसी
होती है ज़िन्दगी भी
कभी कड़क
तो कभी नर्म, मीठी
वक़्त की आँच
इसे भूना करती
नमक-मिर्च
दुनिया लगा देती
अब यह तो
हम तय करते
खाना है इसे
स्वाद लेकर; या तो
फ़ेंक देना है
दूर किसी कोने में
भुट्टा ज्यों पके
खाने लायक बने
वैसे ही मानो
ज़िन्दगी पकी -भुनी
हर हाल में
जीने लायक बनी
खुश रहना
हमें सिखला जाती
राह दिखला जाती।