लाल, हरिहर, पियर-
भूख केरोॅ अगर होतलय कोय रंग
कुच्छो, तनियो सन
तेॅ होतलय ।
गंगिया, फेंकना आरो बंगरा केरोॅ फगुआ
घनरी, बुधनी आरो ननकी केरोॅ वसन्त
मालिक
पक्का मकानोॅ में
गद्दा पर सुतलोॅ छै
आरा गंगिया केरोॅ पसीना
शुद्ध घी बनी केॅ
रसोय घरोॅ में
डबकय छै-मालिक पुआ खैतै
गंगिया भुखले रहतै
ई पंजा आरो गर्दन केरोॅ
खूनी ककहरा के
जब तक नै होतै अन्त
(तब तक)
नपुंसक छै सुरुज
आरो बाँझ छै
नकली रंगोॅ में रंगलोॅ ई वसन्त ।