ओ री दैया, मेरी मैया,
हिलता हूँ मैं, हिलता भैया,
गिरे, गिरे!
खाट हिलाया जीजी करती,
कहती लल्लू हिलती धरती,
गिरे-गिरे!
हिलता है बाबा का पलका,
मटके का सब पानी छलका,
गिरे-गिरे!
पीपल काँप रहा है थर-थर,
खाता है मेरा सिर चक्कर,
गिरे-गिरे!
छप्पर से धम् गिरी बिलाई,
पकड़ो मैं गिरता हूँ भाई,
गिरे-गिरे!
-साभार: ‘बबुआ’, विद्याभूषण ‘विभू’ 1949, 22-23