बेचैन माँझी की पुकार सुनता हूँ 
नदियों-सागरों-महासागरों को 
लाँघकर 
आती हुई दर्दभरी पुकार 
वैशाख की रातों में पके से 
पलते हैं कुछ मीठे सपने 
काँसवन जैसा अशांत मन 
वोल्गा से गंगा तक 
मेघना से ब्रह्मपुत्र तक 
दौड़ाता रहता है यायावर को 
वह जो आदमी के भविष्य का 
गीत है 
वह जो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा 
का वादा है 
वह जो पूस की रात में ठिठुरते 
किसी ग़रीब की चीख़ है 
वह जो प्रेम में न पाने की टीस है 
मेरे हृदय में प्राचीन लोकगीत की तरह 
वह स्वर धड़कता है 
जीवन की रेल में तीसरे दर्ज़े के 
मुसाफ़िरों के आँसू शब्द में 
परिवर्तित होते हैं 
प्यार के दो मीठे बोल की तलाश में 
एक पूरी उम्र बीत जाती है
 
बेचैन माँझी की पुकार सुनता हूँ 
समाज परिवर्तन के लिए 
संगीत एक हथियार है 
कहीं बुदबुदाते हैं पॉल रॉबसन - 
‘वी आर इन द सेम बोट ब्रदर ! 
वी आर इन द सेम बोट ब्रदर !! 
वी आर इन द सेम बोट ब्रदर !!!