राग जैतश्री
भूमितल भूपके बड़े भाग |
राम लखन रिपुदमन भरत सिसु निरखत अति अनुराग ||
बालबिभूषन लसत पायँ मृदु मञ्जुल अंग-बिभाग |
दसरथ-सुकृत मनोहर बिरवनि रूप-करह जनु लाग ||
राजमराल बिराजत बिहरत जे हर-हृदय-तड़ाग |
ते नृप-अजिर जानु कर धावत धरन चटक चल काग ||
सिद्ध सिहात, सराहत मुनिगन, कहैं सुर किन्नर नाग |
"ह्वै बरु बिहँग बिलोकिय बालक बसि पुर उपबन बाग||
परिजन सहित राय रानिन्ह कियो मज्जन प्रेम-प्रयाग |
तुलसी फल ताके चार्यो मनि मरकत पङ्कजराग ||