साँप की छोड़ी गई केंचुल
से ले कर कातर मस्से तक
भूरे की हर छाया
रेंगती है गिरजाघरों पर...
एक स्वर्णिम पोत की तरह
सूर्य
विदा लेता है
एक-एक तारे से
और गुस्सा होता है मंडुवे तले...
रात फिर उतर आती है
थके माथे की तरह
एक हथेली की खोखल में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : नन्दकिशोर आचार्य