बचपन में जो फ्रॉक पहने थे
उनमें से कई की छींट याद है अब तक
किसी का रंग याद है और किसी की लम्बाई
एक महरून रँग का फ्रॉक था
उसमें से आती थी
महरून रँग की ख़ुशबू
कई चीज़ें थीं जिन्हें हम अपना लेते थे
चप्पलें रिबन
हम स्पर्श से पहचान लेते थे अपनी चीज़ें
ऐसा नहीं है कि अब बहुत बूढ़े हो गए हैं
पर मुश्किल होता है किसी चीज़ को अपनाना
बस हम उन्हें बरत लेते हैं
भुला देते हैं
फेंक देते हैं
यहाँ तक कि अपना शरीर भी
याद नहीं रहता अपने शरीर की तरह।