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भूल गए / दिनेश सिंह

जाने कैसे हुआ
कि प्रिय की पाती पढ़ना भूल गए
दायें-बायें की भगदड़ में
आगे बढ़ना भूल गए

नित फैशन की
नये चलन की
रोपी फ़सल अकूते धन की
वैभव की खेती -बारी में
मन को गढ़ना भूल गए

ना मुड़ने की
ना जुड़ने की
ज़िद ऊपर-ऊपर उड़ने की
ऊँचाई की चिंताओं में
सीढ़ी चढ़ना भूल गए

हम ही हम हैं
किससे काम हैं
सूर्य-चन्द्र अपने परचम हैं
फूटी ढोल बजाते रहते
फिर से मढ़ना भूल गए