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भेंट / कुमार सुरेश

वह सुबह पाँच बजे उठाकर
मार्निंग वाक पर जाती है
मुझे अच्छा लगता है
देर तक सोना

वह अलसुबह
स्कूल चली जाती है पढ़ाने
मेरे आफिस का समय
दस बजे का है
मैं देर से लौटता हूँ घर
उसके सोने का समय हो जाता है
एक दूसरे को पा लेने के भ्रम में
खो गए हैं हम
एक दूसरे के लिए
 
इसी क्रमाक्रम के बीच अचानक
हाथ पकड़ लेना एक दूसरे का
या अबोध बिटिया की
किसी बात पर
साथ-साथ खिलखिला उठना
बिजली की चमक की तरह होता है
जिसमें, कुछ पल के लिए
एक दूसरे को हम
फिर से दूंढ लेते हैं