Last modified on 26 अप्रैल 2013, at 09:50

भेड़ / तुलसी रमण

बुज़ुर्गों का कहना है
जब भेड़ मूंडनी हो
उससे पूछा नहीं जाता

दो चार हरी पत्तियां
रोटी का एक ग्रास
या चंद दाने दिखाकर
एक सछल, शरारती पुचकार के साथ,
करीब बुला लिया जाता है उसे
और वह निरीह
सहज चली आती है

बस
सुविधाजनक ढंग से
कैंची चलाकर
ऊन उतार लो उसकी
और फिर से
एक अर्से के लिये
ऊबड़-खाबड़ गहन निर्जन में
नंगा कर छोड़ दो
जहाँ रहते हैं
असंख्य भेड़िये और
भेड़िये के बच्चे
उसके ख़ून की ताक में

सिंहासन सजते हैं
भेड़ की ऊन से
राजतिलक भी होता है
भेड़ के खून से
पर निरीह भेड़ ठगी-सी
बस ऊन होती है
या ख़ून।