(राग मालकोस-तीन ताल)
भोग विषभरे मधुर पकवान।
भोग-काल महँ लगैं अमृत-सम फल में जहर समान॥
बाहर रँग-रोगन मोहन भीतर विष भर्यो महान।
चमक दमक जो देखि फ़ँसे नहिं, सो नर अति मतिमान॥
भरी गंदगी अंदर भारी, बाहर सोभा मान।
भीतर घुसत घोर दुख उपजत, समुझत नहिं अग्यान॥
समुझि भोग कौ रूप जथारथ, पाप-दुःख की खान।
भोग-राग तजि, तुरत भजहि तू हित-सुखमय भगवान॥