भोर की लाली हृदय में राग चुप-चुप भर गयी !
- जब गिरी तन पर नवल पहली किरन
- हो गया अनजान चंचल मन-हिरन
- प्रीत की भोली उमंगों को लिए
- लाज की गद-गद तरंगों को लिए
प्रात की शीतल हवा आ — अंग सुरभित कर गयी !
- प्रिय अरुण पा जब कमलिनी खिल गयी
- स्वर्ग की सौगात मानों मिल गयी,
- झूमती डालें पहन नव आभरण
- हर्ष पुलकित किस तरह वातावरण
भर सुनहरा रंग ऊषा कर गयी वसुधा नयी !