भोर भए नवकुंज सदन तें,आवत लाल गोवर्धन धारी.
लटपट पग मरगजी माला,सिथिल अंग डगमग गति न्यारी.
बिनुगुन माल बिराजति उर पर,नखछत द्वैज चन्द अनुहारी.
छीतस्वामि जब चितय मो तन,तब हौं निरखि गई बलिहारी.
भोर भए नवकुंज सदन तें,आवत लाल गोवर्धन धारी.
लटपट पग मरगजी माला,सिथिल अंग डगमग गति न्यारी.
बिनुगुन माल बिराजति उर पर,नखछत द्वैज चन्द अनुहारी.
छीतस्वामि जब चितय मो तन,तब हौं निरखि गई बलिहारी.