भोर सुहानी / सुरेश विमल

नए वर्ष की देखो भैया
भोर सुहानी आई।

हंसे फूल, गा उठे पखेरू
उत्सव हुआ धरा पर
मन का खाली आंगन जैसे
गया चाव से भर भर।

सूरज की रूपहली किरणें
देने लगीं बधाई।

खेतों में नाची हरियाली
बजी हवा कि ताली
इतने फूल खिले बगिया में
गिन ना पाया माली।

नटखट तितली रंग बिरंगा
फ्रॉक पहन मुस्काई।

नए वर्ष में नई लगन से
मिलकर क़दम बढ़ाएँ
हर संकट को हंसते-हंसते
आओ हम सह जाएँ।

लगने लगी सहज पर्वत की
ऊंची अगम चढ़ाई।

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