और अब आँसू बहाओ मत
- भोर होती है !
दीप सारे बुझ गये
- आया प्रभंजन,
सब सहारे ढह गये
- बरसा प्रलय-घन,
हार, पंथी ! लड़खड़ाओ मत
- भोर होती है !
बह रही बेबस उमड़
- धारा विपथगा,
घोर अँधियारी घिरी
- स्वच्छंद प्रमदा,
आस सूरज की मिटाओ मत
- भोर होती है !
और अब आँसू बहाओ मत
दीप सारे बुझ गये
सब सहारे ढह गये
हार, पंथी ! लड़खड़ाओ मत
बह रही बेबस उमड़
घोर अँधियारी घिरी
आस सूरज की मिटाओ मत