Last modified on 29 मई 2014, at 12:59

भौंचक दक्षिण-वाम / राजेन्द्र गौतम

भूल गया
मेरा शहर
सब ऋतुओं के नाम ।

गुलदस्ते
मधुमास को
बेचें बीच ज़ाज़ार
सिक्कों की खनकार में
सिसके मेघ मल्हार
गोदामों में
ठिठुरती
जब से वत्सल घाम ।

पाँवों में
पहिए लगे
करें हवा से बात
पर ख़ुद तक पहॅुचे कहां
चल कर हम दिन-रात
यहाँ-वहाँ
भटका रहीं रोशनियाँ अविराम ।

पूरब सुकुआ
कब उगा
कब भीगी थी दूब
हिरनी छाई गगन कब
चाँद गया कब डूब
सभी कथानक
गुम हुए
भौंचक दक्षिण-वाम ।