अब लगल आग चहुँओर मंगरुआ दिल्ली चल।
मोखा मोखा लुक्का लहरै, सब सण्ठी सुनगावै
अपने घर खेलै लड़वाड़ी, ईंट-ईंट अलगावै
क्रोध के तपिश, इर्षा के आगिन, देलक पेट लहराय
मंगरुआ दिल्ली चल।
जात के घृणा कि धाह धरम के, बात-बात चिनगारी
मंदिर-मस्जिद भेल अखारा, सुखल स्नेह फुलवारी
स्वारथ भरल मैल भेल जियरा, उपरे-उपर मटकोर
मंगरुआ दिल्ली चल।
गाँव के पोखरी ताल तलैया, सखी बहिनपा कानै
ईद में हँसी, नाच नहीं फगुआ, जाट-जटिन नै जानै
ओसरा ऐंगना गल्ली कोन्टा, भाग-भाग के शोर
मंगरुआ दिल्ली चल।
बाट बटोही मोड़-मोड़ पर, झलकै सगरे सहमल
खाखी-खादी संग उत्पाती सकल डगरिया हलचल
चौक-चौक तकरार के बदबू, कहीं न प्रेम इंजोर
मंगरुआ दिल्ली चल।
मरियल मीत-तीत भेल जियरा, उपरे उपर ठहक्का,
विषरस भरल कनक-घट लागै ई दुनियां हो कक्का
नैन के काजर लोर संगमेल, पंख बिना मन मोर
मंगरुआ दिल्ली चल।