Last modified on 18 अक्टूबर 2013, at 10:06

मंगळगीत / शिवदान सिंह जोलावास

दौड़’र कठै मिलसी खुसी
झूठा भरम नैं पाळ रैया हो
कदैई नचींता बैठ’र
निरखो ऊगतो सूरज
खिल्योड़ा फूल
ओस री बूंदां
अर टाबरां री हंसी नैं
सुणो कोयल री टहूक
बिरखा रो सरणाटो
अर बादळी री गाज नैं
थांनैं साच ठाह पड़ जासी।