तरी नानी नानर नानी, तरी नानारे नान।
तरी नानी नानर नानी, तरी नानारे नान।
काहिन लागय टंगली दाई,काहिन लागय बेंट।
काहिन लागय टंगली दाई, काहिन लागय बेंट।
सोने लागय टंगली दाई, रूपे लागय बेंट।
सोने लागय टंगली दाई, रूपे लागय बेंट।
दुई बोतल दारू दाई, जाँवर सोंहारी।
दवड़ी भरे बासी दाई, तबेला भर दाड़। 2
हलबूर की तलबूर, दोसी होओ लियारी। 2
होवत तियारी दोसी, बड़ा झेलो लागया। 2
एके डगा सारय दोसी, दूवय डगा सारय। 2
पोहचना लागय दोसी, भौंरा-पहड़े।
निवतों कि निवतों दोसी, सारई को मढ़ो। 2
निवतों कि निवतों दोसी, डोसी साल्हे को साजन। 2
निवतों कि निवतों दोसी, बासीं कन्या। 2
साड़े नी काहय दाई, मय मढ़ो होहूँ। 2
साल्हेनी काहय दाई, मैं साजन हो हूँ। 2
बासीं कन्या काहय मैं संग हो हूँ। 2
शब्दार्थ –टंगली= कुल्हाड़ी, बेंट= बेंत/डांड/मूठ, जाँवर=जोड़ा, सोंहारी= पूड़ी, बासी=भात, दाड़=दाल, हलबर-तलबर=जल्दी-जल्दी, सारई= सरई, साजन=मगरोही।
लोहे की कढ़ाई जिसमे लकड़ी की बेंत लगी है। दो बोतल मंद (दारू) राखी। बाँस की एक टोकनी में दाल-भात और दो पूड़ी रखी और वे वृन्दावन भौंरा पहाड़ पर मंडप की लकड़ी काटने चल पड़े। वहाँ पहुँचकर दोसी ने मड़िया के आटे से चौक पूरा, होम-धूप-दीप जलाया। अगरबत्ती जलाई। पूड़ी चढ़ाई और मंद चुहाई हाथ जोड़कर जंगल के सारे देवी-देवताओं का स्मरण किया। मंडप के काटने की अनुमति माँगी। आते और लौटते समय किसी प्रकार की कोई बाधा न आए, इसके लिये देवी-देवताओं से प्रार्थना की।
गीत में कहा गया है। हे माँ! कुल्हाड़ी किससे बनी है और उसकी बेंत (मूठ) किस वस्तु की लगी है। माँ कहती है- तुम लोग जिस शुभ कार्य के लिये जंगल जा रहे हो, वह कुल्हाड़ी सोने की बनी है और उसकी बेंट चांदी की लगी है। साथ में एक दौनी (मटकी) भरकर बासी भात और तबेले में दाल तुम्हारे खाने के लिये रख दी है। ऐ दोसी! तुम भी जल्दी जल्दी करो। तैयार होने में देर लगती है। इसलिये फटा-फट तैयार हो जाओ। हम सब लोग मंडप की लकड़ी काटने को जाने के लिये तैयार हैं। तब दोसी जल्दी करता है और बड़े-बड़े डग भरता चलता है। गीत में तो यहाँ तक कहा गया है कि एक पैर निकालते ही, दोसी दूसरे पैर में भौरा पहाड़ पर पहुँच गया।
गीत गाने वाली महिलाएँ दोसी से आग्रह करती हैं कि तुम सबसे पहले सरई, साल्हे और बासिन कन्या (बाँस को) आमंत्रित करो। तब सरई, साल्हे (जिसका साजन मंगरोही बनाया जाता है,) और बासिन कन्या कहती है- हम तुम्हारे आमंत्रण को स्वीकार करते हैं और तुम्हारे साथ चलते हैं। तब मंडप काटने वाले लकड़ी काटकर काँधे पर रखकर घर ले जाते हैं।
बैगा आदिवासियों का जंगल और वनस्पति से कितना गहरा और सम्मानीय रिश्ता है। यह इस गीत में देखने योग्य है। पेड़ को काटने के पहले उसकी पूजा और उससे काटने की अनुमति ली जाती है। यही नहीं उन्हें विवाह में शामिल होने का आमंत्रण तक दिया जाता है। यही कारण है कि हजारों सालों से जंगल बचे रहे