1
हम मन्त्री छी,
हम एक पैध षड़यन्त्री छी
मानवक सुधारक हेतु हमहिं-
संस्था सबहिक हृत्तन्त्री छी॥
2
हम त्यागी छी,
त्यागी रहितहुँ पुनि रागी छी।
आगाँ पाछाँ बहुतो घूमथि
तैं हेतु बनल ‘‘बड़भागी’’ छी॥
3
फल टटका दी,
बड़का बड़का केँ अँटका दी।
चन्दा सँ जेबी भरि, संस्था केँ
फाँसी पर हम लटका दी॥
4
हम सभ्ये सन,
स्भ्यहु मे बड़का सन अन-मन।
भण्डा नहि फूटै ताहि हेतु
झट झट दै कै ली अधिवेशन॥
5
हम रस आदक,
नित वृद्धि करी सबहक स्वादक।
मकरध्वज सदृश रसायन छथि
हमरे सँ मिलि मिलि सम्पादक॥
6
अछि सझक ज्ञान,
जनिकर अछि सुन्दर खान दान।
तनिंका बनाय ‘‘मेम्बर ‘‘नम्बर’’-
पर आनि करी हम प्राण दान॥
7
जे बुझथि बात,
तनिका सँ रहि हम कात कात।
पाछाँ पाछाँ घुमबैत रही
चौदह सन्ध्या, पन्द्रह परात॥
8
हम सिद्धहस्त,
छी विश्व भरिक सब सँ प्रशास्त।
हम जमा खर्च केँ साफ राखि
बड़को केँ कै दी अस्त व्यस्त
9
हम छी श्रीफल,
ऊपर सँ चिक्कन बेस सफल।
अन्तर लस्सा सँ ओत प्रोत
कण्ठे लग अछि आँठी अँटकल॥