मंदिर की दुति यौं दरसी, जनु रूप के पत्र अलेखन लागे।
हौं गई चाँदनी हेरन को हतँ, क्यौं घरीक निमेष न लागे॥
डीठ परयो नयो कौतुक ह्वाँ, 'ससिनाथजू यातैं बडे खन लागे।
पीठि दै, चंद की ओर चकोर, सबै मिलि मो मुख देखन लागे॥
मंदिर की दुति यौं दरसी, जनु रूप के पत्र अलेखन लागे।
हौं गई चाँदनी हेरन को हतँ, क्यौं घरीक निमेष न लागे॥
डीठ परयो नयो कौतुक ह्वाँ, 'ससिनाथजू यातैं बडे खन लागे।
पीठि दै, चंद की ओर चकोर, सबै मिलि मो मुख देखन लागे॥