इन्द्रधनुष पर रंगों का एक नृत्य मनोहर
अनजानी छवियों की छवियाँ पहचानी-सी
फूली सरसों की चूनर पर ज्यों धानी-सी
मुँदे नयन मंे कैसे वही दिखाती चीवर !
रामकथा का, कृष्णकथा का कितना कुशल चितेरा
लोकहृदय जिसकी कूची पर सँवरा करता प्रतिपल
जिसकी कला पहाड़ी सरिता कल-कल, खल-खल, निर्मल
घने कुहासों की रजनी में स्वर्णिम, शांत, सवेरा।
अद्भुत था वह कलाकार जो कभी-कभी ही आये
मन ने जो कुछ कहा, सुना, और रूप उसे दे डाला
नाद ओम का वही समझता जिसका हृदय शिवाला
रेखाओं की गूढ़ व्यंजना रूढ़ पकड़ न पाये ।
तुम्हंे वही जानेगा जो ना हिन्दू, बौद्ध, या जैन
चुने हुये पर कौन फिदा न होगा कहो हुसैन !