गया बचपन जवानी भी, मगर उल्लास बाकी है।
सजे हर पल सदा अपना, जहाँ तक श्वास बाकी है।
सदा पहचान अपनी हो, मिला आशीष माँ का जो,
शिखर पर हिन्द-हिन्दी हो, यही अहसास बाकी है।
मिले खुशियाँ जहाँ से भी, उपासक हम मनुजता के,
नहीं कटुता किसी से हो, यही विश्वास बाकी है।
तड़पती भावना हरपल, करूँ कुछ देश हित मैं भी,
मिटाकर द्वंद आपस के, करें कुछ खास बाकी है।
दिवा के स्वप्न देखें हम, रहे निज धर्म का चिंतन,
नयी हो सोच जीवन की, सतत अभ्यास बाकी है।
खिले कलियाँ सुखद हर पल, बहारों का सदा आना,
महकती वाटिका अपनी, अभी मधुमास बाकी है।
हिलोरें ले हृदय सागर, भरूँ नित प्रेम की गागर,
भरें सरगम लहर बनकर, अभी वह प्यास बाकी है।