जमीं और आसमां के बीच,
मैंने बाँधा है एक मचान,
बे-दरों-दीवारों का एक छोटा सा मकान
सुबह भीगे पंखों पर आई है आज,
खुशबू मिटटी की हवाएं लायी हैं आज,
महकी महकी सी लगती है,
गर्मी की तपती रातों के बाद आई,
पहली पहली बारिश
अलसता सूरज,
बादलों का लिहाफ हटाकर,
किरण किरण बिखर रहा है,
आसमां पर,
सात रंगों की छतरी सी खुल गयी है,
आज ऐसा क्यों लग रहा है,
जैसे कि मैं बैठा हूँ,
एक बे-दरों-दीवारों के मकान में,
जमीं और आसमां के बीचों बीच,
बांधे हुए मचान में....