कोई बिन्दू है
न मुसलमान
न कोई बामन न ठाकुर
न ऊँचा न नीचा
न छूत न अछूत
न कोई जाति है
न कोई धर्म
बस अब मछलियां हैं
केवल मछलियां
जिनमें से
कुछ छोटी हैं
कुछ एक बड़ी।
बड़ी मछली हमेशा
छोटी मछली को
खा जाती है।
यही तो हैं
वर्षो से
हमें बताया गया
समाज का सच्चा नियम।
अब
इसमें समाज का क्या कसूर
कि तुम हर बार
छोटी मछली ही रह जाते हो
किसी बड़ी मछली के लिए।