मछली रौ न्याव
नानकड़ी रौ
मोटकी रै पेट में
पूग जावणौ व्है
म्हारा सागर देवता !
थूं तो आ जाणै है
कै औ/न्याव
पांणी माथै तैरती
चूड़ी उतार
मछल्या सारू
छोटोड़ी रै गळै
लटकती तलवार व्है।
थूं जाणै है, परभू !
कै औ न्याव
औरूं कीं कोनी
धींगामस्ती
अर
मरजी है
मोटोड़ी ‘व्हैल’ री
आ बात तौ थूं भी जाणै
कै औ न्याव
सेवट
छोटोड़ी मछल्यां री मौत
अर
मगरमच्छां रै मोटै पेट री
थोथ भरण खातर ही व्है।
पण
म्हान ग्यान गुरू
थारी लीला है अपंरपार
म्हनै इण रो ग्यान बतळाव
कै
पांणी रौ औ न्याव
थे कींया पूंचायौ
म्हारे इण
पसरयौड़े
हाथ ऊंचो करियौड़े
थार तांई ?
थें
थारी
परसादी रै पेटे
पीणा सांप
कींया पूगाया अठै ?
जिका
आदमी सूं मूंडौ भिड़ा‘र
पी जावै
उणां रौ सांस-भरोसो
अर रैय जावै
बाकी उणां री ल्हास।
थूं थारी सागरमुदरा
तोड़‘र
म्हनै बता
औ भेद।