Last modified on 13 दिसम्बर 2015, at 17:14

मछुआरों के गाँव में / कुमार रवींद्र

सहमे-सहमे
      उड़े कबूतर
          बैठे छत की छाँव में
 
जंगल-जंगल जोड़े तिनके
आँगन में बिखरे
थके नीड़ के साये में
दिन बैठे रहे डरे
 
पंख समेटे
         सूरज लौटे
            अँधियारों के ठाँव में
 
गौरैया ने आहट सुनकर
मूँदी घर की आँख
नीम हवा में धूप समेटे
हुए अँधेरे पाख
 
लाज घरेलू
         राज़ शहर के
            मछुआरों के गाँव में