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मजदूर / अमरजीत कौंके

खाना खा कर
दीवार की छाया में
सुस्ता रहा है
मज़दूर

आधे दिन का थका-हारा
आधे दिन के साथ
लड़ने के लिए
तैयार हो रहा है

अभी उठेगा वह
सपने झटक कर
लौट आएगा
दूर 'गाँव' के पीपल की
घनी छाँव से उठ कर

आधे दिन के साथ
लड़ने के लिए
बिलकुल तैयार हो जाएगा
मज़दूर।