Last modified on 11 अगस्त 2020, at 22:28

मजदूर बनाम राष्ट्र / सुरेश बरनवाल

यह भी तो एक युद्ध है
कि एक मजदूर
दिन भर की दिहाड़ी के बाद
आधा राशन लिए
थका हारा घर लौटता है।
उसके बच्चे
हर रोज़ युद्धभूमि में उतरते हैं
हसरतों को मारते हैं
और ख़ुद थोड़ा-थोड़ा मरते हैं
यह ऐसा युद्ध है
जिसमें
दो राष्ट्र तो नहीं लड़ते
पर एक राष्ट्र
फिर भी हार जाता है।