- मिल कर क़दम बढ़ाएँ हम
- जय, फिर होगी वाम की !
- मिल कर क़दम बढ़ाएँ हम
शोषित जनता जागी है
पीड़ित जनता बाग़ी है
- आएँ, सड़कों पर आएँ,
- क्या अब चिंता धाम की !
- आएँ, सड़कों पर आएँ,
ना यह अवसर छोड़ेंगे
काल-चक्र को मोडेंगे
- शक्लें बदलेंगे, साथी
- मूक सुबह की, शाम की !
- शक्लें बदलेंगे, साथी
नारा अब यह घर-घर है
हर इंसान बराबर है
- रोटी जन-जन खाएगा
- अपने-अपने काम की !
- रोटी जन-जन खाएगा
झेलें गोली सीने से
लथपथ ख़ून-पसीने से
- इज़्ज़त कभी घटेगी ना
- ‘मेहनतकश’ के नाम की !
- इज़्ज़त कभी घटेगी ना