सँघर्ष पथ पर चल दिया
फिर सोच और विचार क्या !
जो भी मिले स्वीकार है
वह जीत क्या, वह हार क्या !
संसार है सागर अगर
इस पार क्या, उस पार क्या !
पानी जहाँ गहरा वहीं
गोता लगाना है मुझे —
तुम तीर को तरसा करो
मेरे लिए मझधार क्या !
सँघर्ष पथ पर चल दिया
फिर सोच और विचार क्या !
जो भी मिले स्वीकार है
वह जीत क्या, वह हार क्या !
संसार है सागर अगर
इस पार क्या, उस पार क्या !
पानी जहाँ गहरा वहीं
गोता लगाना है मुझे —
तुम तीर को तरसा करो
मेरे लिए मझधार क्या !