राग कान्हरा
मञ्जुल मङ्गलमय नृप-ढोटा |
मुनि, मुनितिय, मुनिसिसु बिलोकि कहैं मधुर मनोहर जोटा ||
नाम-रुप-अनुरुप बेष बय, राम लखन लाल लोने |
इन्हतें लही है मानो घन-दामिनि दुति मनसिज, मरकत, सोने ||
चरनसरोज, पीतपट, कटितट, तून-तीर-धनुधारी |
केहरिकन्ध काम-करि-करवर बिपुल बाहु, बल भारी ||
दूषन-रहित समय सम भूषन पाइ सुअंगनि सोहैं |
नव-राजीव-नयन, पुरन बिधुबदन मदन मन मोहैं ||
सिरनि सिखण्ड, सुमन-दल-मण्डन बाल सुभाय बनाये |
केलि-अंक तनु-रेनुपङ्क जनु प्रगटत चरित चोराये ||
मख राखिबे लागि दसरथ सों माँगि आश्रमहि आने |
प्रेम पूजि पाहुने प्रानप्रिय गाधिसुवन सनमाने ||
साधन-फल साधक सिद्धनिके, लोचन-फल सबहीके |
सकल सुकृत-फल, मातु-पिताके, जीवन-धन तुलसीके ||