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मटके का पानी / रमेश तैलंग

फ्रिज है रईसों के घर की निशानी।
पर भैया, अमृत है मटके का पानी।

मटका गरीबों का धनवंतरी है,
मिट्टी की इसमें सुगंधी भरी है,
पूछे न कोई शहर में इसे पर
गाँवों में है इसकी धाक पुरानी।

मटके का पानी गला न दुखाए,
हो गंदगी तो तले में छुपाए,
रूप से चाहे लगे ये गँवारू,
गुण में नहीं इसका कोई भी सानी।

फ्रिज के है संग रोज बिजली का रोना
मटके को मिल जाए बस एक कोना,
उसमें ही संतोष करके ये तन में
भर दे नई ताजगी और रवानी।
सच भैया, अमृत है मटके का पानी।