Last modified on 16 मई 2013, at 08:10

मतलब की दुनिया / ‘हरिऔध’

 
हैं सदा सब लोग मतलब गाँठते।
यों सहारा है नहीं मिलता कहीं।
है कलेजा हो नहीं ऐसा बना।
बीज मतलब का उगा जिसमें नहीं।1।

कब कहाँ पर दीजिए हम को बता।
एक भी जी की कली ऐसी खिली।
था न जिस पर रंग मतलब का चढ़ा।
बू हमें जिसमें नहीं उसकी मिली।2।

वह करे जितना अधिक जी में जगह।
हो मिठाई बात की जितनी बढ़ी।
लीजिए यह जान उतनी ही अधिक।
मतलबों की चाशनी उस पर चढ़ी।3।

प्यार डूबे लोग कहते हैं उमग।
जो कहो अपना कलेजा काढ़ दूँ।
पर अगर वे निज कलेजा काढ़ दें।
तो कहेगा वह कढ़ा मतलब से हूँ।4।

और का गिरते पसीना देख कर।
जो कि अपना है गिरा देता लहू।
वे कहें कुछ, पर सदा उसमें मिली।
बूझ वालों को किसी मतलब की बू।5।

एक परउपकार ही के वास्ते।
था जहाँ झंडा बहुत ऊँचा गड़ा।
जो गड़ा कर आँख देखा, तो वहीं।
था छिपा चुपचाप मतलब भी खड़ा।6।

थे भलाई के जहाँ डेरे पड़े।
थी जहाँ पर हाट भलमंसी लगी।
घूम कर देखा वहीं मतलब खड़ा।
आँख करके बन्द करता था ठगी।7।

देखता ही दोस्ती का रँग रहा।
जी मुरौवत का टटोला ही किया।
कब बता दो ऐ अंधेरे में चलीं।
हाथ में जब था न मतलब का दिया।8।

डूब करके दूसरों के रंग में।
जो कहीं कोई कली हित की खिली।
फूल जो मुँह से किसी के भी झड़ा।
मतलबों की ही महँक उसमें मिली।9।

दान के सामान सब देखे गये।
देख डालीं डालियाँ छूही रँगी।
जाँच हमने की चढ़ावे की बहुत।
मतलबों की थी मुहर सब पर लगी।10।

जंगलों में देख ली धूनी रमी।
जोग में ही बाल कितनों का पका।
क्या हुआ घर से किनारे हो गये।
कौन मतलब से किनारा कर सका।11।

है बताती वीर की गरदन नपी।
है सती की भी चिता कहती यही।
है यही धुन जौहरी से भी कढ़ी।
आँच मतलब की नहीं किसने सही।12।

जाति के हित की सभी तानें सुनीं।
देश हित के भी लिए सब राग सुन।
लोक हित की गिटकिरी कानों पड़ी।
पर हमें सबमें मिली मतलब की धुन।13।

दिल टटोल उदारताओं का लिया।
रंगतें सारी दया की देख लीं।
साधुता के पेट की बातें सुनीं।
मतलबों को साथ लेकर सब चलीं।14।

कौन उसके बोल पर रीझा नहीं।
कौन सुनता है नहीं उसकी कही।
सब जगह सब काल सारे काम में।
मतलबों की बोलती तूती रही।15।