Last modified on 9 जून 2013, at 10:38

मतवाला / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

बन गये फूलों से काँटे।
आम से मीठे कड़वे फल।
बलाएँ लगीं बला लेने।
चढ़ाई हमने वह बोतल।1।

मोल सारी दौलत ले ली।
कमाया हमने वह पैसा।
नहीं दम मार सका कोई।
लगाया हम ने दम ऐसा।2।

पहुँचता जहाँ नहीं कोई।
पहुँच कर वहाँ पलट आई।
तोड़ लाई तारों को उचक।
पिनक हमने ऐसी पाई।3।

बताएँ कैसे रस उस का।
बताते मुँह जाता है सी।
लगी जिस से ताड़ी शिव की।
हमीं ने वह ताड़ी पी ली।4।

उठाया आँखों का परदा।
भेद जिस ने सारा खोला।
न उतरा किसी गले से जो।
हमीं ने निगला वह गोला।5।

और की बिगड़ें तो बिगड़ें।
हमारी बातें हैं बनती।
किसी गाढ़े दिन के हित से।
हमारी गाढ़ी है छनती।6।

न खिंचने वाली जगहों में।
खिंच सकी है जिस की रेखा।
उसे अपनी आँखें मूँदे।
नशा की झोंकों में देखा।7।

नहीं जिनसे चढ़ जाता है।
काँखते हैं तो वे काँखें।
चढ़ गयी हैं सब से ऊँचे।
हमारी चढ़ी हुई आँखें।8।

सभी ने जागता ही पाया।
पर नहीं नींद कभी टूटी।
जड़ी बूटी कितनी देखी।
हमारी बूटी है बूटी।9।

न जिस को जान सका कोई।
बात वह हमने जानी है।
छू सकी जिसे नहीं दुनिया।
भंग वह हमने छानी है।10।

न जिस का नशा कभी उतरा।
पिया है हमने वह प्याला।
मस्त है रंगत में अपनी।
हमें कहते हैं मतवाला।11।