♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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मति मारौ श्याम पिचकारी, अब देऊँगी मैं गारी॥ टेक
भीजैगी लाज नई मेरी अँगिया, चूँदरि बिगरैगी न्यारी।
देखैगी सास रिसायेगी मोपै, संग की ऐसी हैं दारी,
हँसेंगी दै-दै तारी॥ मति मारौ.
घाट-बाट सब सों अटकत हौ, लै-लै रारि उधारी।
कहाँ लौं तेरी कुचाल कहौं मैं, एक-एक ब्रजनारी,
जानति करतूत तिहारी॥ मति मारौ.
मूठि अबीर न डारौ दृगन में, दूखेंगी आँखि हमारी।
‘नारायण’ न बहुत इतराबौ, छाँड़ौ डगर गिरधारी,
नये-नये तुम हो खिलारी॥ मति मारौ.