आज भय की बात मुझसे मत कहो,
आज बहकी बात मुझसे मत कहो !
प्राण में तूफ़ान-से अरमान हैं,
कंठ में नव-मुक्ति के नव-गान हैं !
ज्वार तन में स्वस्थ यौवन का बहा,
नष्ट हों बंधन, सबल उर ने कहा !
है तरुण की साधना, गतिरोध क्या ?
है तरुण की चेतना, अवरोध क्या ?
द्वंद्व भीषण, है चुनौती सामने,
बीज भावी क्रान्ति बोती सामने !
बद्ध प्रतिपग पर समस्त समाज है;
आग में तपना सभी को आज है !
आज जन-जन को शिथिलता छोड़ना,
है नहीं कर्तव्य से मुख मोड़ना !
इस लगन की अग्नि से जर्जर जले
रक्त की प्रति बूँद की सौगन्ध ले
प्राण का उत्सर्ग करना है तुम्हें,
विश्व भर में प्यार भरना है तुम्हें !
धर्म मानव का बसाना है तुम्हें,
कर्म जीवन का दिखाना है तुम्हें !
मर्म प्राणों का बताना है तुम्हें,
ज्योति से निज, तम मिटाना है तुम्हें !
विश्व नव-संस्कृति प्रगति पर बढ़ चला,
भ्रष्ट जीवन मिट समय के संग गला !
काल की गति, भाग्य का दर्शन मरण,
आज हैं प्रत्येक स्वर के नव-चरण !
जीर्णता पर हँस रही है नव्यता,
खिल रहीं कलियाँ भ्रमर को मधु बता !
ध्वंस के अंतिम विजन-पथ पर लहर,
सृष्टि के आरम्भ के जाग्रत-प्रहर !
जागरण है, जागते ही तुम रहो,
नींद में खोये हुए अब मत बहो !
आज भय की बात मुझसे मत कहो,
आज बहकी बात मुझसे मत कहो !
1950