शांत संयम के नगर में, मत गिराओ बिजलियाँ
री हवा ! दस्तक न देना, खुल न जाएँ खिड़कियाँ
होंठ पर, मरु ने लिखा है
प्यास, केवल प्यास
प्रेम तो कब से अभागा
ले चुका संन्यास
धूप में बेहोश युग से, कल्पना की हिरनियाँ
शांत संयम के नगर में, मत गिराओ बिजलियाँ
रात ने कब से न गाया
तारकों का गीत
सूर्य–यात्री न सुन पाया
भोर का संगीत
स्पर्शवर्जित तार कोई,छू न जाएँ उँगलियाँ
री हवा ! दुस्तक न देना, खुल न जाएँ खिड़कियाँ
और मत आओ हदय के
यूँ निकट अब आप
कर न गुज़रे तन अचानक
कुछ अचाहा पाप
मन जलधी में मत जगाओ, वासना की मछलियों
शांत संयम के नगर में, मत गिराओ बिजलियाँ