तुम अगर गुज़रो कभी इस द्वार के नजदीक से
मत देखना इस ओर
आँखें फेर लेना।
क्योंकि संभव है कहीं पर देखकर मुझको कभी
मरजाद की ठंडी-जमी परतों के नीचे से उमग
इन्सानियत का गर्म सोता
फूट पड़ने को बहुत बेताब हो जाये
संस्कारों की विरासत का समूचा ज़ोर
दिल से उमड़ने वाले कुदरती प्यार को ना रोक पाए!
पर अगर
हिरण के मासूम बच्चे की तरह भटकी तुम्हारी ये नज़र
पत्नीत्व के सीधे सरल सम्बंध की चौड़ी सड़क को छोड़कर
पहुँच जाए फिर अचानक ही कभी
इन प्यार की उलझी हुई पगडंडियों पर
तो मेरी कसम है तुमको
कि अपनी आँख को मत छलछलाना
सामने 'उनके' न कमजोरी बताना
बना कर कोई बहाना
सिर झुका कर निकल जाना
औ' अकेले में कहीं जाकर
उजाले की निगाहों से ये अपना
ज़र्द हारा मुँह छिपाकर
दबे अश्रु बिखेर लेना!
तुम अगर गुज़रो कभी इस द्वार के नजदीक से
मत देखना इस ओर
आँखें फेर लेना।