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मत बातें दरबारी कर / द्विजेन्द्र 'द्विज'

मत बातें दरबारी कर

सीधी चोट करारी कर


अब अपने आँसू मत पी

आहों को चिंगारी कर


काट दु:खों के सिर तू भी

अपनी हिम्मत आरी कर


अपने दिल के ज़ख़्मों —सी

काग़ज़ पर फुलकारी कर


सारी दुनिया महकेगी

अपना मन फुलवारी कर


आना है फिर जाना है

अपनी ठीक तैयारी कर


मीठी है फिर प्रेम—नदी

मत इसको यूँ खारी कर