मनुष्य हो, मनुष्य की तरह जियो-मरो
कर लो वरण मरण, न किन्तु याचना करो
मत याचना करो।
माँगो न देवता से
न माँगो मनुष्य से
यदि माँगना ही हो-
तुम्हें, माँगो भविष्य से
याचक न बनो, याचना-
पतन की नींव है
याचक गिरा हुआ मनुष्य-
क्लीव जीव है
सच है कि वर्तमान ने सौंपा अभाव है
क्यों भाग्य से, भविष्य से तुम्हें दुराव है ?
झाँको न भूत में,
न वर्तमान से डरो
मनुष्य हो, मनुष्य की तरह जियो-मरो
कर लो वरण-मरण, न किन्तु याचना करो
मत याचना करो।
फैली हथेलियों से-
दीनता ही तो झरे
स्रष्टा न कभी सृष्टियों-
से याचना करे
जो कुछ भी पास है-
उसी के रास में जियो
उल्लास में जियो,
सदैव हास में जियो
तुमसे न कोई भी यहाँ महान विश्व में
तुमसे बड़ा न कोई है इन्सान विश्व में
मत हीन भावना से प्राण-कोध को भरो
मनुष्य हो, मनुष्य की तरह जियो-मरो
मत याचना करो।
यदि माँगना ही है तुम्हें
तो दर्प माँग लो
बन जाओ नीलकण्ठ
क्रुद्ध सर्प माँग लो
है धर्म विश्व में न-
‘गरल-पान’ से बड़ा
यदि दान की वैसाखियों-
पर है मनुज खड़ा
धिक्कार है उसे जो कहीं हाथ पसारे
गैरत को गिरा जो किसी के जाये दुआरे
उससे कहो कि त्वरित जीर्ण पत्र-सा झरो
बदनाम मत मनुष्यता की कोख को करो
मनुष्य हो, मनुष्य की तरह जियो-मरो
मत याचना करो।