मदमाती रसाडाल की डारन पै, चढी आनंद सों यों बिराजती है।
कुल जानि की कानि करै न कछू, मन हाथ परयेहिं पारती है॥
कोऊ कैसी करै द्विज तू ही कहै, नहिं नैकौ दया उर धारती है॥
अरी ! क्वैलिया कूकि करेजन की, किरचैं-किरचैं किए डारती है॥
मदमाती रसाडाल की डारन पै, चढी आनंद सों यों बिराजती है।
कुल जानि की कानि करै न कछू, मन हाथ परयेहिं पारती है॥
कोऊ कैसी करै द्विज तू ही कहै, नहिं नैकौ दया उर धारती है॥
अरी ! क्वैलिया कूकि करेजन की, किरचैं-किरचैं किए डारती है॥