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मधुऋतु का गीत / बालस्वरूप राही

पहले असमय ही मुरझाये फूल खिला दो
फिर मधुऋतु का गीत अधर पर लाना साथी।

बंधा हुआ अब भी पतझर के ही सर सहरा
व्याप रहा है चारों ओर कुहासा गहरा
पंख नहीं हैं मुक्त गीत को कोयलिआ के
एक फूल पर है सौ सौ शूलों का पहरा।

पहले तुम हर कारा की दीवार हिला दो
फिर मधुऋतु का गीत अधर पर लाना साथी।

अब तो गई बहार, चमन पर, उजड़ा-उजड़ा
फूलों पर है रंग, मगर कुछ उखड़ा-उखड़ा
बरसी तो अम्बर से सुधा की लेकिन
खिल न सका हर मुरझाई कलिका का मुखड़ा।

कली कली को पहले जीवन-अमृत पिला दो
फिर मधुऋतु का गीत अधर पर लाना साथी।

फूल-फूल के अधरों पर अंगारा धरा है
कली कली के घर तलवारों का पहरा है
नाच रहीं बिजलियाँ प्रलय की आसमान में
ठहरा ठहरा पवन, चमन कुछ डरा डरा है।

नई कोंपलें तोड़ रहीं जो सांस, जिला दो
पहले असमय ही मुरझाए फूल खिला दो
फिर मधुऋतु का गीत अधर पर लाना साथी।