बहुत दिनों के बाद
अघा कर
आज मिली महराज, बियारी !
आधी भेली गुड़ की पायी
भर पुटकी गुरधनियाँ
भंडरिया की आज सफ़ाई
करती है रूकमिनियाँ
उसके पीछे-पीछे ही तो
आया था गोपाल
उसके कंठ पड़ी थी
सूखे फूलों की बनमाल
बुलडोजर ने चर डाली है
भाई, धरती सारी
गाय चराने कहाँ जाएँ अब
बोलो कृष्ण मुरारी
सारा पानी कालियदह में
जल-थल बसैं भुजंगम
कारे-कारे विष के मारे
डारे हैं जड़-जंगम
चिड़िया-चुनगुन जीउ-जनाउर
भूखे प्यासे धावें
होठ धरे मुरली बनमाली
किसको राग सुनावें
भंडरिया की तरह सफ़ाई
दुनिया की कर कोई
गऊ गोपाल गोप सुख पावें
भूखा जाए न कोई